Hello दोस्तों भगवत गीता के बहुत सारे ऐसे शोलोक है, जिससे हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता है। दोस्तों हम आज आपको 700 शोलोको में से 10 ऐसे शोलोको के बारे बतऊँगा। अगर आप इन शोलोको को अच्छे से समज लिया तो आपके जीवन में काफी परिवर्तन आएंगे। दोस्तों में आपको गीता के 10 श्लोक अर्थ सहित हिंदी में बतऊँगा।
गीता के 10 श्लोक अर्थ सहित की कुछ सावधानीया
दोस्तों गीता के 10 श्लोक अर्थ सहित जानने से पहले आपको कुछ सावधानीया बड़तनी पड़ेगी। दोस्तों गीता के शोलोक को पड़ने से पहले आपको पहले शुद्ध होना पड़ेगा और मन को भी साफ रखना पड़ेगा। दोस्तों अक्सर अनुभव किये होंगे पड़ना तो सब चाहता है लेकिन सब इसे पढ़ नहीं पता इसका एक ही कारण है मन का शुद्ध न होना या फिर जीवन के मोह माया में दुबे रहना। जिसके अंदर इन सब द्वैस का प्रभाव होता वो कभी इसे पड़ना पसंद नहीं करेंगे। तो आप बहुत खुश किस्मत हो की पके सामने ये लेख आया। तो दोस्तों चलिए में आपको Step By Step इसे बता देता हु।
शोलोक 1.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
हिंदी अनुवाद : दोस्तों इस शोलोक में श्री कृष्ण भारत (अर्जुन ) से कहते है की जब जब सृस्टि के अधर्म का विकास होता है तब तब में इस सृस्टि में प्रकट होकर अधर्म का नस करता हु।
श्लोक 2.
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥
हिंदी अनुवाद : दोस्तों हम जो भी चिंता करते है दुःख की उत्पत्ति वही से उत्पन हो जाता है चिंता ही एकमात्र दुःख कारन होता है। अगर आप इन जड़ो जगत के माया जो आपको चिंता करने में विवस कर जाता है अगर आप चिंता करना छोड़ देंगे तो आप अपनेआप दुःख, शोक जैसे माया में मुक्त हो जायेंगे और अपने इच्छाओ से भी मुक्त हो जायेंगे।
शोलोक 3.
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
हिंदी अनुवाद : यह शोलोक (भगवद् गीता, अध्याय 3, श्लोक 6) में श्री कृष्ण कहते है जो इंसान कर्मेन्द्रियों (कर्म करने वाले इंद्रियों) को तो रोक लेता है, लेकिन मन से इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, वह मूढ़चेता और मिथ्याचारी कहलाता है। दोस्तों आपको एक चीज़ समझना है आप किसी भी इंद्रियों के चक्कर में नहीं फसते हो फिर भी आप मिथ्याचारी कहलाते हो ये इसलिए कयोकि इंद्रियों को देखने से हमारे मन में कुविचार आते है वही सबसे प्रभावशाली होते है कयोकि इंद्रियों को तो सब देखते है लकिन सबका नजरिया अलग होता है।
श्लोक 4.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अनुवाद : दोस्तों इसमें श्री कृष्ण कहते है की व्यक्ति के पास सिर्फ कर्म करने का ही कर्तव्य होता है। उसे एक बार भी ये नहीं सोचना नहीं चाइये की मेरा कर्म का फल क्या होगा। हमें सिर्फ कर्म पर ध्यान देना जरुरी है। हमें इस मोह में नहीं रहना चाइये कर्म को फल के लिए ही करना है। कर्म सिर्फ कर्म के पर्पस पर ही करना चाइये। इसलिए कर्म करो फल की चिंता मत करो।
श्लोक 5.
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
हिंदी अनुवाद : इस शोलोक में आत्मा का परिभाषा हुवा है इसमें श्री कृष्ण कहते है इस दुनिआ में आत्मा ही एकमात्र ऐसा है जिसे आग जला नहीं सकता, पानी भीगा नहीं सकता, हवा सुका नहीं सकता, आत्मा ही परमात्मा का स्वरुप है जो हमेसा अमर रहता है।
श्लोक 6.
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
हिंदी अनुवाद : इस श्लोक का अर्थ भगवन कहते है जिस इंसान को क्रोध आता है वो अक्सर अपनी बुद्धि नस्ट कर देता है और धीरे धीरे उसकी बुद्धि ख़त्म होने लगता है। जिससे फिर उसके मन कुविचार आने लगता है जिससे फिर इंसान का नाश होने लगता है। इससे हमे ये सिखने को मिलता है कि हमारे सामने कितने भी बड़े से सबदे परिस्तिथि कयो न आये फिर भी हमें शांत मन से उसका विचार करना चाइये जिससे हमें उस प्रसन का मिल सके।
श्लोक 7.
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
हिंदी अनुवाद : दोस्तों यह श्लोक (भगवद् गीता, अध्याय 18, श्लोक 66) भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपदेशों में से एक है। इसमें भगवान कृष्ण कहते हैं कि सभी प्रकार के धर्म और कर्तव्यों को छोड़कर केवल उनकी शरण में आने से ही मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो सकता है। यह श्लोक भक्ति और समर्पण का सार बताता है।
श्लोक 8.
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
हिंदी अनुवाद : यह श्लोक (भगवद् गीता, अध्याय 4, श्लोक 8) भगवान कृष्ण द्वारा कहा गया है। इसमें वे बताते हैं कि वे हर युग में धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए अवतार लेते हैं। यह श्लोक भगवान के अवतार लेने का उद्देश्य स्पष्ट करता है – सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का नाश और धर्म की पुनःस्थापना। यह श्लोक भगवान की दिव्य भूमिका और उनकी लीला को दर्शाता है।
श्लोक 9.
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।
मामेकं शरणं व्रज विश्वात्मन्मा शुचः स्थिरम्॥
हिंदी अनुवाद : इस श्लोक में भगवन कहते है कि इस दुनिआ में छोटी से छोटी वस्तु मेरे ऊपर निर्धारित है, धागे में मोतियों कि माला से लेकर इंसान के हरेक कदम मेरे ऊपर आश्रित है अतः हे विश्वात्मन् मेरी शरण में आओ, मुझमें ही तुम्हारा कल्याण है।
श्लोक 10.
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शांतिमापनोति नैष्ठिकम्।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥
हिंदी अनुवाद : यह श्लोक (भगवद् गीता, अध्याय 5, श्लोक 12) कर्म योग का सार बताता है। इसमें भगवान कृष्ण सिखाते हैं कि कर्म करते समय फल की इच्छा न रखने से ही मनुष्य वास्तविक शांति और मुक्ति प्राप्त करता है। वहीं, जो व्यक्ति फल की इच्छा से बंधा होता है, वह कर्मों के बंधन में फंस जाता है। यह श्लोक निष्काम कर्म का महत्व समझाता है।
निष्कर्ष : तो दोस्तों कैसा लगा मेरा ये लेख मैंने आपको गीता के 10 श्लोक अर्थ सहित बता दिया आशा करता हु कि आपको सरे श्लोक समाज में आ गए होंगे। दोस्तों सरे श्लोक बहुत ही महतवपूर्ण है इसे अगर आप अपने जीवन में अपनाये तो आप इस जड़ों जगत के माया से बच सकते है। इसके अलावे दोस्तों कलयुग में सबसे प्रसिद्ध मंत्र भी है जो आप इसका भी पाठ आकर सकते है तो दोस्तों अगर आपको मेरा ये लेख पसंद आया तो मुझे आप Flow कर सकते है में ऐसी ही अच्छी अच्छी श्लोको के बारे में बताता रहता हु।
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